मस्जिद में मोदी के मायने

..........डा0 आशीष के0एस0 मैसी

अपनी हिन्दू राष्ट्रवादी पहचान के लिये विख्यात श्री नरेन्द्र मोदी की अबू धाबी के शेख जायद मस्जिद में प्रवेश कर मस्जिद परिसर से जैसे ही तस्वीरें जनता के सामने पहुंची। एक नये प्रकार की चर्चाओं का बाजार गरम हो गया। तर्क वितर्क होने लगे, मस्जिद में जाने के मायने खोजे जाने लगे ? किसी ने सराहा तो किसी ने सवालिया निशान लगाये।

यह भारतीय कूटनीतिक इतिहास की अनूठी घटना कही जा सकती है जोकि मोदी की सांस्कृतिक कूटनीति की एक बहुत महत्वपूर्ण कड़ी बनी। एक तो इस मस्जिद में जाने के बहाने भारत के प्रधानमंत्री ने अपने भारतीय संविधान के प्रति प्रतिबद्धता को नया आयाम दिया और 125 करोड़ की भारतीय टीम में किसी भी समुदाय के अलग न होने की पुरजोर पुष्टि भी की। 125 करोड़ भारतीयों ने अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुसलमानो के किरदार की मेक इन इण्डिया की संरचना में अग्रणी भूमिका को और भी पुख्ता किया।

अगर राजनीतिक दृष्टि से देखें तो भारत की मुस्लिम राजनीति जो पिछले छह दशकों से पाकिस्तान केन्द्रित मानी जाती थी, उसको अरब केन्द्रित बनाने में एक हल्का सा मोदी सरकार का झटका दुनिया को कारगर लगने लगा। इस तीर से कई निशाने सधे। एक तो आतंकवाद को मजहब के रंग से मुक्ति मिली और दुनिया के सभी मजहब, जातियों का आतंकवाद से लड़ने का संकल्प भी सामने आया। उससे बडी बात यह है कि इतिहास में पहली बार मुस्लिम जगत ने भारतीय नेतृत्व को दिल से स्वीकारा। इसका उदाहरण है संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में भारत की सीट के लिये अरब जगत का समर्थन। इससे पहले बांग्लादेश, तजाकिस्तान आदि मुस्लिम राष्ट्र भी भारत के लिये समर्थन का वायदा कर चुके हैं।

भारत में आतंकवाद को खत्म करने में भी दुबई के संदेश के बहुत गहरे मायने हैं। एक ओर इस नई रिश्तों की धारा से काली कमाई की बहुत सी सम्पत्तियाँ अब संयुक्त अरब अमीरात के सरकारों की हो सकती है। दूसरे इन अमीरों का सीधा पैसा भारत के विकास में लाने की संभावनायें भी खासी बढ़ गई हैं। चूंकि यमन के पतन के बाद जिस प्रकार से आई0एस0आई0एस0 का उद्भव हुआ है उससे इस्लामिक अरब राज्य अपने पैसे व तेल की सुरक्षा के प्रति खासे चिंतित दिखाई दे रहे हैं। भारत में उनका वह सुरक्षा की किरण नजर आ सकती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अमेरिका अब सीधे लड़ाई के मूड में नहीं है। अमेरिकी जनता अब अपने सैनिको की शहादत बर्दाश्त नहीं कर सकती। अमेरिकी जनता का दबाव हर सरकार पर बढ़ रहा है। डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन सभी पार्टियों पर दबाव है कि अमेरिकी फौजे वहां से हटें तथा अमेरिकी सैनिक व पत्रकार हताहत न हो। जिसका परिणाम पश्चिम एशिया में दिखाई दे रहा है।

अतः भारत की विशाल सेना इन अरब राज्यों को अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था का विकल्प प्रदान कर सकती है। जिसकी उन्हें आवश्यकता है तथा उनके पास इस खर्च को वहन करने के लिये आर्थिक संसाधनों की कोई कमी नहीं। इस सुरक्षा के लिये भारत के डिफेंस कोरिडोर में अरब राष्ट्रों की उपस्थिति व आर्थिक सहयोग अगर दिखाई दे, तो आश्चर्य नहीं होगा।

..............
डा. आशीष कुमार सिंह मैसी 
एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट,
पूर्व अध्यक्ष/मंत्री,
राज्य अल्पसंख्यक आयोग, उ.प्र. सरकार

Comments

Popular posts from this blog

वंदे बनाम गंदा नहीं अभिनंदनीय आत्मनिर्भर भारत

नागरिकता संशोधन का अनागरिक तरीके से विरोध